Reproduction in human

 *मानव सजीव  प्रजक जीव है जो लैंगिक जनन द्वारा अपने जैसे संतानों को उत्पन्न करता है।                        *मानव एक लिंगी जीव है। अतः इसमें नर तथा मादा अलग-अलग जीवन में पाया जाता है।                           *प्रजनन हेतु मानव में विकसित तथा जटिल प्रजनन तंत्र पाया जाता है नर तथा मादा का प्रजनन तंत्र एक दूसरे से भिन्न होते हैं प्रजनन तंत्र के अंतर्गत जनन अंग तथा ग्रंथियां आते हैं।                                                    *मानव लगभग 12 वर्षों की आयु में जनन के योग हो जाते हैं मानव जब जनन के योग होते हैं तब न एवं मादा दोनों की शरीर में कोई परिवर्तन होते हैं इस परिवर्तन को प्यूबर्टी कहते हैं। प्यूबर्टी के समय होने वाला परिवर्तन अंतः स्रावी ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन के द्वारा होता है।                                                     *मानव 13 से 19 वर्ष की आयु तक वैक्स होने की सारी प्रक्रिया को पूरी कर लेता है तथा शारीरिक तथा मानसिक रूप से जनन के योग बन जाता है। इस उम्र परिसर(13-19 वर्ष ) को किशोरावस्था या  टीन एज कहते हैं।                                                                        /*नर जनन तंत्र*/।                                           
    *नर जनन तंत्र पेल्विस क्षेत्र में स्थित रहता है तथा इसके अंतर्गत निम्न अंग तथा ग्रंथि आते हैं-।                   1. वृषण=यह मुख्य जनन अंग है। क्योंकि इसी में शुक्राणु का निर्माण होता है। शुक्राणु को नर युग्मक कहा जाता है।                                                                *प्रत्येक नर में में एक जोड़ी वृषण पाया जाता है। प्रत्येक वृषण 5 सेंटीमीटर लंबा 2.5 सेंटीमीटर चौड़ा तथा 3 सेंटीमीटर मोटा होता है इसका भार लगभग 12 ग्राम होता है।                                                                      *वृषण का निर्माण तीसरे- चौथे महीने में वृक्क के आगे में होता है जो धीरे-धीरे नीचे उतरकर जांघों के बीच एक थैली समान संरचना में बंद हो जाता है इस थैली को वृषण कोष कहते हैं।                                                   *वृषण कोष का निर्माण बाहर से त्वचा के द्वारा तथा भीतर से पेरीटोनियम झिल्ली द्वारा होता है दोनों ही वृक्क वृक्क कोष में पहुंचकर पेरिटोनियम  मांसपेशियों द्वारा आपस में जुट जाते हैं तथा पुनः कभी शरीर के अंदर नहीं जा पाते है।                                          *वृषण कोष में शुक्राणु निर्माण हेतु उपयुक्त तापमान पाया जाता है वृषण कोष का ताप शरीर के ताप 37 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस से 3 डिग्री सेल्सियस कम रहता है।                                                       *वृषण के भीतर ढेर सारी शुक्र जनन नलिकाएं पाया जाता है, जिसमें शुक्राणु का निर्माण होता है।                                                                          2. अधिवृषण-  वह मोती नाली सामान रचना है जो वृषण के भीतरी भाग से चिपकी रहती है ।अधि वृषण का निर्माण सभी शुक्र वाहिकाएं नलियों के आपस में जुटने से निर्मित होता है।                                     3. शुक्र वाहिका-   दोनों अधिवेशन से निकली नाली सामान रचना शुक्र वाहिका कहलाती है। शुक्रवहीका 25 सेंटीमीटर लंबी होती है ,जो उधर गुहा में प्रवेश कर मूत्राशय तक पहुंचती है।                                    4. शुक्राशाय-- यह खोकली थैली सामान एक जनन ग्रंथि है जो ऐसे पदार्थ का स्त्राव करता है जिससे शुक्राणुओं को पोषण प्राप्त हो सके।                                     5.वीर्य --संभोग करते समय अथवा मानसिक भावनाओं के प्रभाव से लिंग के शीर्ष भाग से जो द्रव  निकलता है उसे वीर्य कहते हैं।                                           
                                                                                      ।/*मादा जनन तंत्र*/।                                *मदा के प्रजनन तंत्र में निम्नलिखित अंग पाए जाते  हैं                                                                                  1. अंडाशय-- प्रत्येक मादा शरीर में एक जोड़ा अंडाशय होता है। अंडाशय अंडाकार आकृति का होता है जो 3 सेंटीमीटर लंबा 1.5 सेंटीमीटर चौड़ा तथा 1 सेंटीमीटर मोटा होता है।                                                    2. अंडवाहिनी या फैलोपियन नलिका-- प्रत्येक मादा शरीर में दो अंडवाहिनी पाया जाता है अंडवाहिनी 12 सेंटीमीटर लंबा होता है जो दोनों अंडाशय के ऊपरी भाग से शुरू होकर गर्भाशय की ऊपरी भाग तक होती है।                                                                                 3. गर्भाशय-- गर्भाशय की आकृति नाशपाती के समान होती है या उधर गुहा के पेल्विक क्षेत्र में मलाशय तथा मूत्राशय के बीच स्थित होता है।                                  4. योनी-- योनि को मैथुन कक्ष भी कहते हैं। यह एक पेशियां नाली है जो 7 से 10 सेंटीमीटर लंबी होती है तथा यह फैलने योग्य होती है।                                         5. स्तन ग्रंथि-- यह ग्रंथि मादा तथा न दोनों में पाए जाते हैं। परंतु नर मानव में यह ग्रंथि अक्रिय रहता है। मादा मानव में इस ग्रंथि के चारों ओर वास का जमा होने से फूली हुई दिखाई पड़ती है।                                 

                          

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